पदार्थान्वयभाषाः - (शूर वज्रिवः) हे पराक्रमशील ओजस्वी परमात्मन् ! या वज्रवाले राजन् ! तू उन मुमुक्षु उपासकों या राष्ट्रनायकों सैनिकों को (वृत्रहत्ये कार्पाणे) पापनाशक कार्य में अथवा आक्रमणकारी की हत्या जिसमें हो, ऐसे कृपाणयुक्त संग्राम में (चोदय) प्रेरित कर उत्साहित कर (नक्षत्रशवसां कवीनां विशां गुहा यदि) अक्षीण धनवाले, अध्यात्म ऐश्वर्यवाले विद्वानों के तेरे में प्रवेश करते हुए उपासकों के जब कभी तू प्रेरणा कर या अक्षीणबलवालों के क्रान्तिकारी जनों के गूहनीय स्थल-शिविर में जब कभी भी प्रेरणा कर ॥१०॥
भावार्थभाषाः - परमात्मा मुमुक्षुजनों के पापनाशन-कार्य में या राजा आक्रमणकारी की हत्या के अवसर पर कृपाणयुक्त संग्राम में बल की प्रेरणा करता है। अध्यात्म ऐश्वर्यरूप धनवाले विद्वानों को परमात्मा जैसे प्रेरणा देता है, ऐसे ही राजा भी बलवान् पुरुषों को प्रेरणा देता है ॥१०॥